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From Nirma to NaMo

by Jean Dreze, 31 December 2013

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(Hindi translation - pasted further down - was published in Prabhat Khabar of 31 December 2013.)

It is interesting how media reports of Narendra Modi’s rallies differ from the real thing. To see the difference for myself, I attended Narendra Modi’s recent rally in Ranchi.

More than 10 days in advance, the rally had been the object of a massive publicity campaign in Ranchi. There were giant posters of Modi and his party colleagues at almost every chauraha, sometimes ten or twelve at a time. On the main roads, it was almost impossible to look in any direction without meeting Modi’s eyes.

The rally was very well planned and the crowd was huge. The Bharatiya Janata Party (BJP) obviously has great organisational skills, and a lot of money. It would be interesting to know where the money comes from. But like other mainstream parties, the BJP has resisted any financial transparency norms.

A series of party stalwarts spoke before Modi arrived, but the crowd did not show much interest. Clearly, they had come mainly to get a glimpse of the famous Modi. Only Arjun Munda managed to connect with the crowd to some extent.

When Modi’s helicopter arrived, Bollywood-style, the crowd woke up with loud cheers. The party workers took the lead but everyone stood up to greet the legendary saviour. His entry on the stage was skilfully choreographed, with powerful sound effects, video clips, and chants of “NaMo, NaMo†. BJP President Rajnath Singh warmed up the audience, comparing Modi to Ram himself.

Modi spoke with dramatic tone and gestures. He raised and lowered his voice for best effect, with solemn pauses in between. But his rhetoric had the contrived feel of a film audition and the content was flat. Perhaps that is why people started leaving the grounds in large numbers soon after he started speaking. Those who remained showed little interest in what he said and rarely clapped or cheered despite prompting from party workers.

To me it looked like Modi had failed to connect with the audience. One reason, perhaps, is that he came across as an outsider, who had been quickly briefed about Jharkhand but had no feel for it. Another reason is that he failed to go beyond the platitudinous promises of any politician who is begging for people’s votes. He kept asking people to reflect on the mess they were in, blissfully forgetting that Jharkhand has been under BJP rule for 8 out of 13 years since its creation in 2000.

I have learnt one thing from this rally: there is little difference today between politics and business. Electoral campaigns are just another job for the public relations industry. Some sell Nirma, others sell NaMo – the same advertisement agencies use the same techniques for both purposes.

The people of Jharkhand deserve better. No amount of propaganda can hide the fact that the BJP bears a heavy responsibility for Jharkhand’s ruin during the last twelve years. Other mainstream parties, including the Congress, have also taken part in the loot. Let us hope that others with a different vision will come forward and present the people of Jharkhand with a real alternative, as happened recently – to some extent - in Delhi.

(Prabhat Khabar, 31 December 2013)

निरमा से नमो तक

जॠयां दॠरेज

नरेंदॠर मोदी की रैलियों की हकीकत मीडिया में छपी रिपोरॠटो से किस कदर अलग होती है- यह जानना रोचक हो सकता है।. इस अनॠतर को खॠद से समठने के लिठमैंने हाल ही में रांची में आयोजित उनकी रैली में शिरकत की.

दस दिन पहले से ही रैली के लिठपूरे शहर में जोर-शोर से पॠरचार अभियान चल रहा था. मोदी और उनकी पारॠटी के अनॠय सहयोगियों के बड़े-बड़े पोसॠटर शहर के लगभग हर चौक -चौराहे पर लगे थे- कहीं कहीं तो ठक जगह दस-दस, बारह-बारह पोसॠटर! चाहे आप किसी दिशा में जा रहे हों, शहर की मॠखॠय सड़कों पर बिना मोदी से नजरें मिलाये निकलना लगभग असंभव था.

रैली बड़ी सॠनियोजित थी और भीड़ जबरदसॠत थी. इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारतीय जनता पारॠटी (भाजपा) का सांगठनिक कौशल उमॠदा है और उसके पास बहॠत पैसा है. किसी को यह पूछने की सहज रॠचि हो सकती है कि आखिर यह पैसा आता कहां से है. लेकिन मॠखॠयधारा की अनॠय पारॠटियों की तरह , भाजपा भी वितॠतीय पारदरॠशिता के मान-मूलॠयों का विरोध करती रही है.

मोदी के आगमन से पहले पारॠटी के कई दिगॠगज नेता बोले, लेकिन भीड़ ने कोई खास दिलचसॠपी नहीं दिखायी. साफ था कि वे मॠखॠयत: बहॠपॠरचारित मोदी की ठक ठलक मातॠर पाने के लिठआये थे. केवल अरॠजॠन मॠंडा ही कॠछ हद तक खॠद को भीड़ से जोड़ पाने में कामयाब हो सके.

मोदी का हेलीकॉपॠटर फिलॠमी अंदाज में उतरा तो भीड़ ने जोरदार हरॠषधॠवनि की. पारॠटी के कारॠयकरॠता इसमें आगे रहे लेकिन हर कोई अपने तारनहार के सॠवागत में खड़ा हो गया. जोरदार साउंड ठफेकॠट,वीडियो कॠलिपों और ‘नमो-नमो’ की गूंज के साथ सॠटेज पर मोदी की ठंटॠरी की तैयारी बड़े नाटकीय ढंग से की गयी थी. पारॠटी अधॠयकॠष राजनाथ सिंह ने शॠरोताओं को संबोधित करते हॠठमोदी की तॠलना भगवान राम से कर डाली.

मोदी बहॠत नाटकीय सॠवर और भाव-भंगिमाओं के साथ बोले. बेहतरीन पॠरभाव पैदा करने के लिठउनॠहोंने अपनी आवाज में उतार-चढ़ाव का इसॠतेमाल किया, कई जगह बिलॠकॠल सॠविचारित अंतराल लिये. लेकिन यह सारी भाषणबाजी किसी फिलॠम के ऑडिशन का भान करा रही थी. विषय-वसॠतॠठकदम सपाट थी। शायद यही वजह थी कि उनके भाषण के शॠरू होने के कॠछ ही समय बाद लोग मैदान छोड़ते नजर आये. और जो रॠके भी रहे, उनमें भी मोदी की बातों के पॠरति कोई खास उतॠसाह नजर नहीं आया. पारॠटी कारॠयकरॠताओं के इशारे के बावजूद लोगों ने कभी-कभार ही हरॠष धॠवनि की या तालियां बजायीं.

मॠठे जान पडा कि मोदी शॠरोताओं से संवाद कायम कर पाने में नाकामयाब रहे. इसकी शायद ठक वजह यह रही हो कि वे यहां ठक बाहरी वॠयकॠति की तरह आये थे, उनॠहें ठारखंड के बारे में जलॠदबाजी में कॠछ-कॠछ बताया गया होगा, खॠद उनॠहें ठारखंड के पॠरति कोई खास अहसास ना नहीं था. दूसरी वजह यह भी रही कि वह वोट के लिठ, दूसरे नेताओं दॠवारा किये जानेवाले चॠनावी वादों से परे नहीं जा पाये. उनॠहोंने लोगों को राजॠय की दयनीय सॠथिति की ही जॠयादा याद दिलायी, यह भूलते हॠठकि सनॠ2000 में राजॠय के बनने के बाद से 13 सालों में आठसाल से जॠयादा समय तक भाजपा ही सतॠता में रही है.

इस रैली से मैंने ठक चीज सीखी कि आज राजनीति और वॠयवसाय के बीच का अंतर ठकदम कम हो गया है. चॠनाव अभियान जन-संपरॠक उदॠयोग के ठक अनॠय कॠषेतॠर के तौर पर विकसित हो रहा है. कॠछ लोग निरमा बेचते हैं, तो कॠछ लोग नमो को बेचते हैं. दोनों को बेचने के लिठठक ही तरह की विजॠञापन ठजेंसियां ठक ही तरह के हथकंडे अपनाती हैं.

ठारखंड के लोग इससे अधिक के हकदार हैं। पॠरचार का कोई भी हथकंडा इस तथॠय को ठॠठला नहीं सकता कि बीते 12 वरॠषो में ठारखंड की बदहाली के लिठभाजपा सबसे बड़ी दोषी है. कांगॠरेस सहित मॠखॠयधारा की अनॠय पारॠटियां भी राजॠय के संसाधनों की लूट में शामिल रही हैं. उमॠमीद करनी चाहिठकि इन सबसे अलग विचारदृषॠटि के साथ कोई सामने आये और लोगों के सामने बेहतर विकलॠप पॠरसॠतॠत करे, जैसा कि ठक हद तक हाल ही में दिलॠली में हॠआ.

(Prabhat Khabar, 31 December 2013)