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30 March 2021
Appeal for Immediate Bail to 84-year Old Stan Swamy
We, the undersigned, are shocked by the rejection of a bail application filed by Stan Swamy in the Bhima Koregaon case by the special NIA (National Investigation Agency) court on 22 March 2021. He was arrested on 8 October 2020 and continues to languish in jail.
Eighty-four-year old Stan Swamy is a Parkinson’s disease patient with severe tremors in both hands. He has trouble drinking from a glass, taking bath and washing clothes on his own. He has other health ailments as well. Before his arrest, he used to spend most of his time at Bagaicha, Ranchi. Despite being repeatedly harassed (first by Maharashtra police and then the NIA) since 2018 in this case, he stayed in Bagaicha and cooperated fully with the investigation. Rejection of the bail of an elderly and ailing person, with limited mobility and no history of violence against others, is beyond comprehension.
We know Stan as an exceptionally gentle, honest and selfless person. We have the highest regard for him and his work. He has spent decades in Jharkhand working for the rights of the Adivasis and underprivileged.
It is ironic that while public support for Stan Swamy continues to grow, the court rejected the bail application in the “community’s interest†. Adivasis, Gram Sabhas, civil society, several political leaders and parties, and Jharkhand’s Chief Minister himself have condemned Stan’s arrest and expressed support and solidarity with him.
The recent Arsenal report, prepared on the basis of electronic evidence collected by the NIA, has exposed how fake documents were planted into the computers of the accused in the Bhima Koregaon case. Stan himself clearly told the NIA that some so-called extracts allegedly taken from his computer were fabricated and that he disowned them. It is disturbing that the court decided to ignore this evidence of fabrication as it rejected the bail application.
Stan Swamy is a symbol of the plight of thousands of undertrial prisoners who languish in jail for years under fabricated UAPA charges, often aimed at harassing those who stand up for the underprivileged or oppose the government. The conviction rate in UAPA cases is extremely low (2.2% between 2016-19 as mentioned in the Parliament), confirming that many of the charges are baseless.
We appeal for immediate bail for Stan Swamy, repeal of UAPA, and a return to the norm where bail is the rule not the exception.
In Solidarity
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30 मारॠच 2021
84 वरॠषीय सॠटेन सॠवामी की ततॠकाल बेल के लिठअपील
हम, विà¤à¤¿à¤¨à¥ न जन संगठन व सामाजिक कारॠयकरॠता, 22 मारॠच 2021 को विशेष NIA अदालत दॠवारा à¤à¥€à¤®à¤¾ कोरेगांव मामले में सॠटेन सॠवामी की बेल के आवेदन को ख़ारिज करने के निरॠणय से हैरान हैं. उनॠहें 8 अकॠटूबर 2020 को गिरफॠतार किया गया था और तब से वे जेल में हैं.
84 वरॠषीय सॠटेन सॠवामी पारॠकिनॠसन रोग के मरीज़ हैं ठवं उनके दोनों हाथों में अतॠयधिक कमॠपन होता है. उनॠहें गॠलास से तरल पदारॠध पीने में, नहाने में ठवं कपड़े धोने में कठिनाई होती है. उनॠहें अनॠय सॠवासॠथॠय समॠबंधित समसॠयाठं à¤à¥€ हैं. उनकी गिरफ़ॠतारी से पहले, वे अपना अधिकांश समय बगईचा, रांची में ही गॠजारते थे. हालाठकि 2018 से (पहले महाराषॠटॠर पॠलिस व बाद में NIA दॠवारा) उनॠहें लगातार à¤à¥€à¤®à¤¾ कोरेगांव मामले में परेशान किया जा रहा था, लेकिन वे बगईचा में ही सॠथायी रहे और उनॠहोंने जांच में पूरॠण सहयोग किया. ठक ठसे वॠयकॠति, जो बॠज़ॠरॠग हैं, रोग गॠरसित हैं, ज़ॠयादा चलने-फिरने में सकॠषम नहीं हैं ठवं जिनका दूसरो के विरॠदॠध हिंसा का कोई इतिहास नहीं है, इनकी बेल खारिज होना सोच से परे हैं.
हम सॠटेन को विशेषकर ठक सजॠजन, ईमानदार और जन-हित में काम करने वाले इनॠसान के रूप में जानते हैं. हमारे मन में उनके और उनके काम के लिठसरॠवोचॠचॠच समॠमान है. वे दशकों से ठारखंड में आदिवासियों व वंचितों के अधिकारों के लिठसंघरॠषत रहे हैं.
यह सोचने की बात है कि ठक तरफ सॠटेन सॠवामी के लिठजन समरॠथन लगातार बॠरहा है और दूसरी ओर नॠयायालय ने उनके बेल आवेदन को “समॠदाय के à¤à¤²à¥‡â€ के नाम पर ख़ारिज कर दिया है. बड़ी संखॠया में आदिवासियों , गॠराम सà¤à¤¾à¤“ं, जन संगठनों, सामाजिक कारॠयकरॠताओं, राजनैतिक पारॠटियाठ, नेताओं ठवं ठारखंड के मॠखॠयमंतॠरी ने à¤à¥€ सॠटेन की गिरफ़ॠतारी की निंदा की हैं ठवं उनके संघरॠष को समरॠथन दिया हैं.
NIA दॠवारा इकठॠठा किठगठइलेकॠटॠरॉनिक सबूतों के आधार पर बनी आरॠसेनल रिपोरॠट ने यह सॠपषॠट कर दिया है कि à¤à¥€à¤®à¤¾ कोरेगांव मामले में आरोपित सामाजिक कारॠयकरॠताओं के कंपॠयूटर में फ़रॠज़ी दसॠतावेज़ डाले गठथे. सॠटेन ने खॠद NIA दॠवारा पॠरसॠतॠत विà¤à¤¿à¤¨à¥ न दसॠतावेजों (जो तथाकथित रूप से उनके कंपॠयूटर से पाठगठहैं) का पूरॠण खंडन किया था और कहा था कि ये दसॠतावेज़ फ़रॠज़ी रूप से उनके कंपॠयूटर में डाले गठहै. यह चिंताजनक है कि नॠयायालय ने बेल को ख़ारिज करने के दौरान इन बातों को दरकिनार किया.
सॠटेन सॠवामी उन हजारों विचारधीन कैदियों के पॠरतीक हैं जो सालों से UAPA के फ़रॠज़ी आरोपों पर जेल में बंद हैं. वंचितों के अधिकारों के लिठसंघरॠष करने वालों अथवा सरकार का विरोध करने वालों के विरॠदॠध अकॠसर UAPA को इसॠतेमाल किया जाता है. यह सोचने की बात है कि UAPA मामलों में से नगणॠय मामलों में ही दोष सिदॠध होता है (2016-19 में 2.2%, हाल में केंदॠर सरकार दॠवारा संसद में दिठजवाब के अनॠसार). यह इंगित करता है कि UAPA के लगà¤à¤— सà¤à¥€ मामले निराधार होते हैं.
हम अपील करते हैं कि सॠटेन सॠवामी को ततॠकाल बेल दी जाठ, UAPA को रदॠद किया जाठठवं नॠयाय व लोकतानॠतॠरिक मूलॠयों पर आधारित वॠयवसॠथा की पॠनः सॠथापना हो जिसमें बेल मिलना असामानॠय बात न हो.
संघरॠष के समरॠथन में.
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