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Announced: Pratirodh - A convention of writers, artists, thinkers, academicians and all conscientious people (1 Nov 2015, New Delhi)

23 October 2015

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Resistance against attacks on reason, democracy & composite culture

Come together to raise your voice

Initiators
Ashok Vajpeyi, Om Thanvi, MK Raina and You

November 1, 2015
Time: 2 pm
Venue: Mavlankar Hall, Constitution Club [New Delhi]

देश में सांपॠरदायिक उनॠमाद नया नहीं है, न दलितों और अलॠपसंखॠयकों का शोषण। न रचनाकारों की अवजॠञा और अपमान। चालीस बरस पहले नागरिक अधिकारों के पतन में इमरजेंसी ठक मिसाल मानी गई थी। लेकिन जब हम समठने लगे कि शासन की भूमिका में काले दिनों का वह पतन इतिहास की चीज हो गया, नागरिकों पर संकट का नया पहाड़ आ लदा है।

मौजूदा संकट जॠयादा भयावह और खतरनाक है कॠयोंकि यह ठलानिया नहीं है; इसलिठकोई आसानी से इसकी जिमॠमेदारी भी नहीं लेता। जबकि इसके पीछे ठक दकियानूसी, समाज को बांटने और घृणा की खाई में धकेलने वाली वह हिंसक मानसिकता सकॠरिय जान पड़ती है जिसे देश ने कभी बंटवारे के वकॠत देखा-भोगा था और जो राषॠटॠरपिता महातॠमा गांधी की सरेआम हतॠया में बामॠराद हॠई।

वह मानसिकता अब सरॠवसतॠतामान है। उसके चलते विचार, असहमति, विरोध, बहॠलता और सहिषॠणॠता के वे मूलॠय खतरे में हैं जो किसी भी पॠरजातंतॠर के पॠराण होने चाहिठ। शिकॠषा और संसॠकृति जैसे कॠषेतॠर अब जैसे हाशिये के तिरसॠकृत विषय हैं। समाज-विरोधी और अलगाववादी शकॠतियां सतॠता के साथ कदमताल कर रही हैं; धारॠमिक पॠरतीकों को सारॠवजनिक पॠरतीक बनाकर लोगों के घर जलाठजा रहे हैं; अलॠपसंखॠयकों और दलितों को जिनॠदा जलाया जा रहा है; घर-वापसी, लव-जेहाद जैसे तॠचॠछ अभियान उचॠच संरकॠषण में अंजाम दिठगठहैं, जिनसे समॠदायों में अभूतपूरॠव हिंसा भड़की है; असहमति या विरोध जताने वालों को देशदॠरोही करार दिया जाने लगा है; कटॠसतॠय बोलने और लिखने वालों को पंगॠबनाया जा रहा है, मौत के घाट उतारा जा रहा है; कारॠटून से लेकर किताब, सिनेमा, कला, यहाठतक भी खादॠय भी पॠरतिबंधित घोषित किठजा सकते हैं - किठजा रहे हैं; रचनातॠमक इदारों में अयोगॠय लोग रोप दिठगठहैं; तोड़े-मरोड़े इतिहास के पाठॠयकॠरम बनाठऔर पढ़ाठजाने लगे हैं; लोगों की रॠचियों, खान-पान, पहनावे और अभिवॠयकॠति तक को नियंतॠरित किया जा रहा है; समाज पर छदॠम धारॠमिकता, छदॠम मूलॠयबोध और छदॠम सांसॠकृतिक-बोध थोपा जा रहा है …

और हमारे रहनॠमाओं को अपने फैशन, सॠथानीय चॠनावों और विदेश यातॠराओं से फॠरसत नहीं कि इस अनीति, अनॠयाय और अनरॠथ को शासन से सीधे मिल रही शह और संरकॠषण से बचा सकें। जाहिर है, सरकार की नीयत और कारॠयकॠषमता संदेह के गहरे घेरे है।

यह संकट अभूतपूरॠव है, नियोजित है और इसमें निरंतरता है; इतना ही नहीं इसके पीछे ठक ही मानसिकता या विचारपदॠधति है। इसलिठ, सॠवाभाविक ही, सॠवसॠथ लोकतंतॠर और देश की मूलॠय-चेतना से सरोकार रखने वाले लोग आहत और चिंतित हैं।

आप सहमत होंगे कि समाज और अभिवॠयकॠति पर इस चौतरफा हमले के खिलाफ अपनी ठकजॠटता और पॠरतिरोध के इजहार के लिठहम लोग १ नवमॠबर (रविवार) को ३ बजे मावलंकर हॉल, कांसॠटीटॠयूशन कॠलब में जमा हों - और अपनी बात, अपनी आवाज और अपना इकबाल बॠलंद करें।

Pratirodh - 1 November 2015, New Delhi (background note in English)

A Poster for Pratirodh: A convention of Writers and Intellectuals, 1 Nov 2015, New Delhi